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आदिवासियों की मनोरंजक कहानियाँ

श्रीचन्द्र जैन

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :16
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5078
आईएसबीएन :0000

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इसमें आदिवासियों की मनोरंजक कहानियों का उल्लेख किया गया है।

Aadivasiyon Ki Manoranjak Kahaniyan A Hindi Book by Shri Chandra Jain - आदिवासियों की मनोरंजक कहानियाँ - श्रीचन्द्र जैन

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

घास क्यों बढ़ी ?

एक समय की बात है। महाराज विक्रमादित्य घूमने के लिए जंगल में गए। उनके साथ उनके चार मंत्री थे। जंगल में घास इतनी बढ़ चुकी थी कि महाराज का चलना कठिन हो गया। उन्होंने घास से पूछा, ‘‘तू इतनी क्यों बढ़ गई है ?’’
‘‘महाराज !’’ मैं क्या करूँ ! मुझे चरने के लिए गाएँ आती ही नहीं हैं।’’ घास ने कहा।

महाराज विक्रमादित्य ने गायों को बुलाकर पूछा, ‘‘तुम जंगल में चरने क्यों नहीं जातीं ? वहाँ घास खूब बड़ी है।’’
‘‘महाराज, हमारा दोष कुछ नहीं है। ग्वाला हमें जंगल में नहीं ले जाता है।’’ सबसे ऊँची गाय ने कहा।
ग्वाले को दरबार में बुलाया गया।

‘‘तू गायों को जंगल में चराने क्यों नहीं ले जाता ? वहाँ घास बहुत बढ़ गई है।’’ महाराज ने पूछा।
ग्वाला बोला, ‘‘सरकार ! मैं क्या करूँ ? मेरा मालिक मुझे कब खाने को देता है। और इसीलिए मुझमें शक्ति कम रह गई है। मैं इतना कमजोर हो गया हूँ कि जंगल में नहीं जा सकता।’’

महाराज ने सिपाही भेजकर गायों के मालिक को बुलाया। उसके आने पर महाराज ने पूछा, ‘‘तुम क्यों अपने ग्वालो को कम खाने को देते हो ?’’

गायों के मालिक ने हाथ जोड़कर कहा, ‘‘महाराज ! कुम्हार बर्तन बनाकर देता नहीं है। खाना किसमें पकाया जाय ?’’
कुम्हार को दरबार में बुलाया गया। महाराज ने कहा, ‘‘तुम बर्तन कम क्यों बनाते हो ?’’
कुम्हार ने प्रार्थना की, ‘‘सरकार ! मैं बहुत बर्तन बनाता हूँ, लेकिन चूहे उन्हें फोड़ डालते हैं।’’


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